वैसे तो सीमा नहीं दृष्टि की लेकिन जो ऊपर है और जो नीचे है- यहाँ ऎन सामने हम पर कुछ बरसाता-सरसाता, उससे एक अलग ही नाता है।
प्रयाग शुक्ल की रचनाओ से साभार ....
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