Sunday, August 30, 2009


अभी चली जाएगी शाम यह
निकट अंधेरे के ।

बुझते प्रकाश में--
मोरों का बोलना
मंडराना चिड़ियों का
पत्तियों का हिलना

सिमटना आकाश का ।

साथ वही, देखो फिर
अनलिखा !

Saturday, August 29, 2009


चांद चढ़ रहा है
आकाश में--
इस शहर में ।
रिक्शों की घंटियाँ,
भोंपू गाड़ियों के,
तितर-बितर आवाज़ें ।

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चढ़ रहा है चांद,
एक दूसरे शहर में ।

Friday, August 28, 2009

मोबाइल ब्लोगिंग की पहली पोस्ट


और वो शुरुआत नाश्ते के साथ .................................

Wednesday, August 26, 2009

एकला चलो रे


एक अकेला पथ

कभी कभी


साधारण भी असाधारण सा महसूस होता है
पता नही कितने और लोग इस बात को समझने में समय लगाते है

वहीँ पास में ये भी पाया गया

पेड़ को चिंता नहीं है ठूँठ की
चिड़ियाँ चहचहाती हैं
मैं जब एक पगडंडी पर चला जा रहा होता हूँ
घास पर-- पीली मुरझाई घास पर

और कैद किया गया

एक और


वही पुराना शगल ! जनवरी की सर्दियों में सरसों के खेत से गुजरते हुए इसने पकड़ कर रोक लिया

बड़े दिनों बाद


व्यस्तता के बीच जगह कम बचती है पर ये क्या कम है की जगह है
और पूरी शिद्दत के साथ है