Sunday, March 16, 2008
Wednesday, March 12, 2008
सपने
सपने हमेशा बेमतलब ही होते हैं शायद. सपने बीजने के लिए भी उतनी दिलेरी चाहिये जितनी खुदा को स्रष्टि की रचना करते समय थी.
(अजीत कौर की एक कहानी से साभार)
(अजीत कौर की एक कहानी से साभार)
Sunday, March 9, 2008
एक प्रशन
पहला प्रश्न
केवल प्राण काफी न थे?
किसने चेताई थी चेतना की मद्धिम आंच?
और किसने भेज दिए संशयों के अंधड़?
(अजय कुमार सिंह के "पेड़ की छाया दूर है " से साभार)
केवल प्राण काफी न थे?
किसने चेताई थी चेतना की मद्धिम आंच?
और किसने भेज दिए संशयों के अंधड़?
(अजय कुमार सिंह के "पेड़ की छाया दूर है " से साभार)
Saturday, March 8, 2008
"कुछ कवितायें समझ में भले ही न आती हों, किंतु वे मेरी शांती भंग करने में सम्र्थ थी, मेरे मन को वे अक्सर उस दिशा में भेज देती थीं जिस दिशा में कहीं कोई क्षितिज नहीं था, न कोई किताब खुल कर बंद होती थी। मेरी चेतना के घाट बंध चुके थे, मेरी चमड़ी मोटी हो चुकी थी, मेरे मुहावरे अब बदले नही जा सकते थे। अतएव किसी के लिए यह असंभव कार्य था की वे मुझे बदल कर अपनी राह पर लगा लें।"
(रामधारी सिंह दिनकर, उद्धरण : संचयिता)
(रामधारी सिंह दिनकर, उद्धरण : संचयिता)
Thursday, March 6, 2008
Wednesday, March 5, 2008
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