Friday, June 25, 2010
Friday, June 11, 2010
अक़ल का कब्ज़ा हटाया जा रहा है
विनय कुमार के रचना संग्रह से साभार:
अक़ल का कब्ज़ा हटाया जा रहा है।
जिस्म का जादू जगाया जा रहा है।
लाख पी लो प्यास बुझती ही नहीं है क्या पता क्या-क्या पिलाया जा रहा है।
हर तरफ डाकू बसाए जा रहे हैं वक़्त को बीहड़ बनाया जा रहा है।
हद ज़रूरत की उफ़क़ छूने लगी है क़द ज़रूरत का बढ़ाया जा रहा है।
सोचने से मुल्क बूढ़ा हो गया है सोच से पीछा छुड़ाया जा रहा है।
सख्तजां हैं ये हरे फल हरे पत्ते पेड़ को नाहक हिलाया जा रहा है।
नींद धरती की उड़ाई जा रही है चांद को सोना सिखाया जा रहा है।
Subscribe to:
Posts (Atom)