Monday, September 21, 2009


गड़गड़ाते हुए
बादल
पेड़ तक, घर तक ।
हवा को भेजते
दर-दर ।


Sunday, September 6, 2009

Khel dhoop chhaonv ka....

वैसे तो सीमा नहीं दृष्टि की
लेकिन जो ऊपर है
और जो नीचे है-
यहाँ ऎन सामने
हम पर कुछ बरसाता-सरसाता,
उससे एक अलग ही
नाता है।

प्रयाग शुक्ल की रचनाओ से साभार ....



Wednesday, September 2, 2009

रोज उठने बैठने की साथ में मजबूरिया,

वरना कोई कम नहीं है दोस्ती की मुश्किलें .

Tuesday, September 1, 2009