Saturday, March 8, 2008

यह जो फूटा पड़ता है
हरा पत्तों से...
धुप के आर पार
वही फूट आता है
किसी और जगह;
किसी और सुबह
भरोसा है तो इसी हरे का
(प्रयाग शुक्ल के कविता संग्रह से साभार उध्रत)

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