Friday, March 5, 2010

अंजना संधीर की रचनाओ से साभार ....

कभी मिलेंगी जो तनहाइयाँ तो पढ़ लेंगे
छुपाके हमने कुछ ऐसी कहानियाँ रख दीं।

यही कि हाथ हमारे भी हो गए जख्मी
गुलों के शौक में काँटों पे उंगलियाँ रख दीं।

कोई लकीर तुम्हारी तरफ़ नहीं जाती
तुम्हारे सामने हमने हथेलियाँ रख दीं।

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